छन्द के छ : सोरठा छन्द

देवारी

राज करय उजियार, अँधियारी हारय सदा
मया-पिरित के बार, देवारी मा तँय दिया, ||

तरि नरि नाना गाँय , नान नान नोनी मनन,
सबके मन हरसाँय , सुआ-गीत मा नाच के ||
.
सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस,
आज जुआ के नेंग , जग्गू घर-मा फड़ जमिस ||

arun nigamसोरठा छन्द

डाँड़ (पद) – २, ,चरन – ४
तुकांत के नियम – बिसम-बिसम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , बिसम चरन मा मातरा – ११, सम चरन मा मातरा- १३
यति / बाधा – ११, १३ मातरा मा
खास- दोहा के बिल्कुल उलटा होथे सोरठा , सम चरन के सुरु मा के “जगन” मनाही.
सम चरन के आखिर मा सगन, रगन या नगन या नान्हें,बड़कू(१,२)
बिसम चरन के आखिर मा बड़कू,नान्हें (२,१)

पहिली डाँड़ (पद)

राज करय उजियार- बिसम चरन (२+१)+(१+१+१)+(१+१+२+१) = ११
अँधियारी हारय सदा- सम चरन (१+१+२+२)+(२+१+१)+(१+२) = १३

दूसर डाँड़ (पद)

मया-पिरित के बार- बिसम चरन (१+२)+(१+१+१)+(२)+(२+१) = ११
देवारी मा तँय दिया- सम चरन (२+२+२)+(२)+(१+१)+(१+२) = १३

तुकांत– बिसम चरन के आखिर मा (यार /बार) माने बड़कू,नान्हें (२,१) आय हे.

अरुण कुमार निगम
एच.आई.जी. १ / २४
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़